Notice: Function _load_textdomain_just_in_time was called incorrectly. Translation loading for the acf domain was triggered too early. This is usually an indicator for some code in the plugin or theme running too early. Translations should be loaded at the init action or later. Please see Debugging in WordPress for more information. (This message was added in version 6.7.0.) in /home/paa17624/public_html/wp-includes/functions.php on line 6121

Notice: Function _load_textdomain_just_in_time was called incorrectly. Translation loading for the add-search-to-menu domain was triggered too early. This is usually an indicator for some code in the plugin or theme running too early. Translations should be loaded at the init action or later. Please see Debugging in WordPress for more information. (This message was added in version 6.7.0.) in /home/paa17624/public_html/wp-includes/functions.php on line 6121

Notice: Function _load_textdomain_just_in_time was called incorrectly. Translation loading for the google-analytics-for-wordpress domain was triggered too early. This is usually an indicator for some code in the plugin or theme running too early. Translations should be loaded at the init action or later. Please see Debugging in WordPress for more information. (This message was added in version 6.7.0.) in /home/paa17624/public_html/wp-includes/functions.php on line 6121
लिंग जांच जरूरी है - Paalonaa

लिंग जांच जरूरी है

अगर मुझे ठीक से याद है तो मेनका गांधी ने एक बार कहा था कि भ्रूण जांच बंद नहीं होनी चाहिए। उनके इस बयान पर काफी हो हल्ला भी हुआ था। लेकिन किसी ने उनकी बात को समझने की कोशिश नहीं की थी। उनका कहना था कि भ्रूण जांच करवाकर उन गर्भवती स्त्रियों पर विशेष निगाह रखी जाए, जिनकी कोख में बच्चियां पल रही हों और उनका सुरक्षित जन्म सुनिश्चित किया जाए। यानी उन्हें गर्भपात से बचाया जाए।

झारखंड के इटखोरी में दो झोलाछाप डॉक्टरों द्वारा नवजात शिशु का लिंग काटने की घटना की कल जानकारी मिली तो मुझे फिर एक बार लगा कि श्रीमती गांधी अपनी जगह एकदम सही थी। पूरी घटना यूं है कि इटखोरी के एक निजी क्लीनिक में 8 माह की गर्भवती महिला पहुचीं तो वहां के झोलाछाप डॉक्टरों ने कोख में पल रहे बच्चे की लिंग जांच करके बताया कि यह एक लड़की है। महिला प्रसव वेदना में थी। कुछ ही देर में उसने एक बेटे को जन्म दिया। अपना झूठ छुपाने के लिए उन डॉक्टरों ने उस नवजात शिशु का लिंग काट दिया, जिससे बच्चे की मौत हो गई। इसके बाद सारी प्रक्रिया को अंजाम देने वाले दोनों डॉक्टर फरार हो गए। मामले ने तूल पकड़ लिया और पुलिस ने दोनों के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर लिया।

ये कोई पहला मामला नहीं रहा होगा, जब उन डॉक्टरों ने लिंग परीक्षण किया हो। ऐसा भी नहीं है कि ये केवल जांच करके ही छोड़ देते होंगे। इच्छुक लोगों को गर्भपात की सुविधा भी जरूर देते होंगे। न ही ये आखिरी डॉक्टर्स होंगे, जो लिंग जांच और फिर गर्भपात करते हों। जो पकड़ा गया, वह दोषी और जो जब तक नहीं पकड़ा जा रहा है, तब तक सब सही है। अब तक न जाने कितने बच्चे, विशेषकर बच्चियां इसका शिकार हो चुकी होंगी और आज भी हो रही होंगी।

तो क्या लिंग जांच बंद करके हमने इन घटनाओं पर रोक लगा दी। शायद नहीं, पूरी तरह तो बिल्कुल नहीं। घटनाओं का रिपोर्ट नहीं होना इस बात का सबूत नहीं कि वे हो ही नहीं रही। वे हो रही हैं, लेकिन पूरी सावधानी बरतते हुए। किसी ने मुझे एकबार ये भी बताया था कि किसी शहर में एक डॉक्टर अपनी कार में लिंगजांच और गर्भपात करवाने के सारे उपकरण लेकर चलती थी और चलती गाड़ी में ही इसे अंजाम देती थी। हालांकि बाद में शायद वह पकड़ी गई थी।

स्पष्ट है कि लिंग जांच हो या गर्भपात, कानून की नजरों में धूल झोंक कर अब भी किए जा रहे हैं और हम शतुरमुर्ग बने बैठे हैं। भ्रूण हत्या में कमी आई है, इससे किसी को  इनकार नहीं, लेकिन क्या किसी ने नोटिस किया कि हाल के सालों में शिशु हत्या की घटनाएं कितनी बढ़ गई हैं। किसी ने सोचने की जहमत उठाई कि इसका कारण क्या हो सकता है। किसी ने इसे भ्रूण हत्या पर रोक से जोड़ कर देखने की कोशिश नहीं की।

अब इसे दूसरे नजरिए से देखिए। यदि हर गर्भ में पल रहे शिशु की लिंग जांच जरूरी होती और वह कानून के दायरे के अंदर होती, तो किसी को भी चोरी-छुपे इन झोलाछाप डॉक्टर्स के पास जाने की जरूरत नहीं पड़ती, न ही इनके हाथों लुटने की जरूरत होती। नहीं, मेरा मकसद लिंग जांच करवाकर बच्चियों को मरवाने वालों को इनके चंगुल से बचाना नहीं है, न ही ऐसे लोगों के प्रति मेरी सहानुभूति है। मेरा उद्देश्य सिर्फ और सिर्फ बच्चे की सुरक्षा सुनिश्चित करना है। लिंग जांच से जिन गर्भस्थ बच्चियों के बारे में जानकारी मिलती, उन्हें ज्यादा सुरक्षा और सुविधा दिलवाई जा सकती थी। उनका सुरक्षित जन्म करवाया जा सकता था। जन्म के बाद कठोर मॉनिटरिंग बाद में भी इन बच्चों के सुरक्षित जीवन को गारंटी देती। जिससे शिशु परित्याग और शिशु हत्या की घटनाओं में जो हम आज इतना इजाफा देखते हैं, वह भी नहीं होता। क्योंकि इन घटनाओं के एकाएक बढ़ने के पीछे कहीं न कहीं लिंग जांच पर रोक होना भी एक कारण है।

अब जो आर्थिक रूप से कमजोर लोग हैं, जो महंगे डॉक्टर्स की फीस अफॉर्ड नहीं कर पाते, या पकड़े जाने के डर से लिंग जांच नहीं करवाते, वे अपने बच्चे को जन्म के बाद फेंक देते हैं, जिंदा ही। जिसकी परिणति इन बच्चों की निर्मम हत्या के रूप में हम लगभग हर रोज देखते हें।

इटखोरी वाला मामला रेयरेस्ट ऑफ रेयर है, यानी झूठ को सही साबित करने के लिए बच्चे का लिंग काट देना। इसीलिए वह चर्चा में आ गया। क्यों न इसी के बहाने हम रुककर एक बार भ्रूण जांच संबंधी अपनी पॉलिसी को रिव्यू कर लें। क्या यही वह समय नहीं है, जब इस मुद्दे पर देशव्यापी बहस छेड़ी जाए और कुछ ऐसा कदम उठाया जाए, जिससे बच्चों का जीवन सुरक्षित बनाया जा सके। क्यों नहीं मेडिकल प्रोफेशनल्स, होने वाले माता-पिता, कानून विशेषज्ञ, चाईल्ड एक्टिविस्ट्स व इस मुद्दे से जुड़े समाज के अन्य तबकों को शामिल कर, एक व्यापक सर्वे करवाया जाए, बातचीत की जाए, बहस हो और फिर इस पॉलिसी का पुनर्निर्माण हो।