इस बच्ची के गले में काले रंग का रिबन जैसा कुछ बंधा है। प्रत्यक्षदर्शी इसे जूते बांधने वाला फीता बता रहे हैं तो पुलिस को यह नजर से बचाने का धागा दिखाई दिया। यदि यही सच है तो ये जानना महत्वपूर्ण है कि इस बच्ची के गले में नजर का धागा बांधने वाले और इसे यहां फेंकने वाले हाथ एक ही व्यक्ति के थे या अलग-अलग लोगों के।
आप जानना चाहते होंगे कि ये बच्ची कौन है। दरअसल यह तस्वीर रांची के नामकुम में आज मिले एक नवजात बच्ची के शव की है। उम्र यही कोई एक से दो माह के बीच। सुबह सवेरे स्वर्णरेखा नदी के किनारे बेजान पड़ी थी वो, जिसे श्मशान घाट के एक कर्मचारी ने देखा, जो शौच के लिए वहां से गुजर रहा था।
पुलिस को फोन किया गया, पुलिस आई भी। गनीमत इतनी रही कि उन्हीं में से एक पुलिसवाले की संवेदनशीलता ने उसे जानवरों का शिकार होने से बचा लिया, जिसने वक्त पर अपनी जेब से पैसे खर्च कर उसके शव को पोस्टमार्टम के लिए रिम्स भेज दिया। केस फिलहाल दर्ज नहीं हुआ है। अगर रिपोर्ट में कुछ निकलता है, कोई इसके लिए दबाव बनाता है तो पुलिस केस दर्ज कर लेगी, ऐसा पा-लो ना को बताया गया। इसका दूसरा मतलब ये भी निकलता है कि यदि कोई दबाव नहीं बना, किसी ने फॉलो-अप नहीं किया तो केस दर्ज नहीं होगा।
रांची में मिशनरीज ऑफ चैरिटी द्वारा नवजात शिशुओं की बिक्री के मामले को उजागर हुए एक सप्ताह भी नहीं बीता कि ये घटना सामने आ गई। क्या वर्तमान हालातों में इसे कैजुअली लिया जा सकता है। क्या ऐसा नहीं हो सकता कि इस बच्ची की हत्या के तार मिशनरीज ऑफ चैरिटी के मामले से जुड़े हों।
मिशनरीज के मामले को लेकर कड़ाई से जांच जारी है। हर दिन नए खुलासे हो रहे हैं। स्थानीय अखबार इन खबरों से पटे हुए हैं। जिन परिवारों में बच्चे बेचे गए हैं, उनके यहां दबिश दी जा रही है। लोग खुद भी बच्चों को सरेंडर कर रहे हैं या छोड़ कर भाग रहे हैं। वे दहशत में हैं। कहीं उनकी दहशत नन्हे मासूमों के लिए खतरा तो नहीं साबित होगी।
वे भी अच्छी तरह जानते हैं कि उनके अपराध का कोई रिकॉर्ड मिशनरीज ने नहीं रखा है। वे जानते हैं कि केवल बच्चा ही वह सूत्र है, जो शायद उन्हें सलाखों के पीछे पहुंचा सकता है। कहीं ऐसा तो नहीं कि वे इस सूत्र को ही मिटा देने की फिराक में हों। क्योंकि इन हालात में किसी बच्चे के शव को यूं ही फेंक देना दुस्साहस का ही परिचय देना है।
ये सभी आशंकाएं तब तक निर्मूल नहीं होंगी, जब तक इन मामलों में कड़ाई से जांच नहीं हो जाती। पुलिस के अधिकारी और जवान काम के कितने दबाव में रहते हैं, कितनी तरह के मामले उनकी जान सांसत में डाले रखते हैं, इससे अनजान नहीं हूं मैं। लेकिन ये भी तो सच है कि उनके संवेदनशील हुए बिना इन मामलों की तह तक नहीं पहुंचा जा सकता।
मालूम हुआ कि नामकुम में सीसीटीवी लगे हुए हैं। इस मामले के उद्भेदन के लिए उनकी मदद ली जा सकती है।
आज नामकुम में मिले बच्ची के शव ने फिर ये अहसास करवाया कि केवल नीयत साफ रहने और इन मृत नवजात शिशुओं के लिए काम करने की मंशा रखने से कुछ हासिल नहीं हो सकता, जब तक सरकार/ प्रशासन इसे लेकर संजीदा न् हो। और इसका बेहद अफसोस है कि हमारी आवाज उन तक नहीं पहुंच पा रही है।